शनिवार, 15 अगस्त 2009

माय नेम इस "खान"

आप सोच रहे होंगे कि ये बोलीवुड के सुपर स्टार किंग खान याने शाह रुख खान की आने वाली फ़िल्म का टाइटल है तो ये सही नही है ये किसी फ़िल्म का टाइटल नही बल्कि ख़ुद किंग खान के कहे शब्द है कि माय नेम इस शाह रुख खान... दरअसल यूँ कि किंग खान को अमेरिका के एक एअरपोर्ट पर कुछ सुरक्षा अदिकरिओं ने उनके उपनाम खान की वजह से दो घंटे तक उनसे ऐसे पूछताछ कि जेसे वो कोई आतंकवादी हों अब इसे विश्व के सबसे शक्तिशाली देश की सुरक्षा वयवस्था कहें या छाछ को फूक के पीना दरअसल 9/ 11 की घटना के बाद से अमेरिका अब हर विदेशी को शक की नज़रों से देखता है और इसी चाक्चोबंद सुरक्षा का नतीजा है कि जबसे अमेरिका मे कोई आतंकी घटना नही हुई है और एक हमारे देश की सुरक्षा वयवस्था है जिसमे सुरक्षा का तो नामों निशान ही नही है बस केवल वयवस्था है जिसपर करोडो लोगों की रक्षा का जिम्मा है खेर बात अमेरिका की है तो इस मामले मे वो कोई रिस्क नही लेना चाहता है दूध तो दूर की कोडी है अब वो छाछ भी फूंक फूंक के ही पीने लगा है तभी तो बादशाह खान को भी नही बख्शा... चूँकि बात शाह रुख की है तो वो ठहरे करोड़ों दिलों की जान जिनपे क्या युवा क्या बच्चा क्या बडा और क्या बुड्डा सभी फ़िदा है और खबरिया चैनलों को भी किंग खान की कीमत अच्छे से पता है फ़िर शाह रुख खान जितना बड़ा नाम है उतना ही बड़ा प्रोडक्ट भी लिहाज़ा praim टाइम पैकेज का jugad हो गया .... कहा गया की किंग खान के साथ दुर्वयवहार हुआ है उनकी बेज्ज़ती हुई है और जब शाह रुख जेसी बड़ी हस्ती के साथ एसा हो सकता है तो आम आदमी का क्या होगा ? लेकिन ख़ुद को न्यूज़ चैनल का दर्जा देने वाले चैनल ने ये नही बताया की कोण से आम आदमी की बात कर रहा है ? वो आम आदमी जो सुईं फ्लू की जांच के लिए अस्पताल के चक्कर काट रहा है या वो जो इससे बचाव के लिए नकली मास्क पहनकर घूम रहा है और ख़ुद को सुरक्षित समझ रहा है या वो जो बिना चीनी की चा और बिना दाल के दिल को खुश करने मे लगा है यहाँ आम आदमी को परिभाषित करना अत्यन्त जरुरी है क्योंकि आज़ादी के ६२ बसंत बीतने के बाद भी आम आदमी की पहचान नही हो सकी है हमारे मनोरंजन उर्फ खबरिया चैनल शायद आज भी यही समझते है की अमेरिका एअरपोर्ट जाकर अपने सामान की जांच कराने वाला इंसान आम आदमी है? जबकि आम आदमी तो बच्चों के स्कूल कोलेज और हाँ कोचिग की फीस घर का राशन बढ़ी दरों पे बिजली का बिल बॉस के नखरे और बीवी के खर्चे उठाने की जुगत मे महीने भर मशक्कत करता है तब कहीं जाकर इन जिम्मेदारिओं को निभा पता है और महीने एक बार परिवार को घुमाने के नाम मंदिर गया तो नारियल पानी और मोल गया तो वाही पुराणी बड़ा सा अलसीडी दिखाकर इस दिवाली पर किश्तों मे खरीदने की कहानी अपने बच्चों को सुनते हुए मोल और मन्दिर दर्शन कर किराए के माकन मे लोट आता है तो अब ये और इन जेसे जाने कितने आम आदमी है जो अमेरिका जातें है और जो जातें भी है क्या हकीकत मे आम आदमी कहलाने के योग्य है? अगर है तो आम आदमी का सर्टिफिकेट उनके पास होना चाहिए जिससे आम और खास की पहचान की जा सके क्योंकि अगर हवाई यात्रा करने वाला आम आदमी है तो क्या सो रुपे के लिए तपती धुप मे पत्थर तोड़ने वाला कोण है? और ये दोनों अगर आम हैं तो फ़िर खास शब्द का अन्तिम संस्कार कर दिया जाना चाहिए या भारत को विकासशील से विकसित घोषित कर देना चाहिए बहरहाल इधर किंग खान को हिंदुस्तान की बेज्ज़ती बताते हुए उनके चाहनेवाले शर्म करो अमेरिका लिखे पोस्टर लेकर सड़कों पर उतर आए लेकिन सवाल ये है कि इससे होने क्या वाला है ? और ये लोग तब कहाँ थे जब देश के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल में डोक्टर एपीजे अबदुलकलाम साहब की चेकिंग के chole मे अपनी ही देश के एअरपोर्ट पर अमेरिकी विमान कंपनी के अधिकारीयों ने जूते उतरवा लिए थे ? उधर शाह रुख खान का बड़प्पन देखी की एअरपोर्ट के बाद वो सीधे समारोह मे गए और वहां मोजूद लोगों इस देरी के लिए माफ़ी मांगी अब इन दोनों घट्नाओ से और इन जेसी अन्न घटनाओं से सवाल ये उठता है की क्या ये सुरक्षा पुख्ता करना है या सो करोड़ हिंदुस्तानिओं को नीचा दिखने की नाकाम कोशिश फ़िर नस्लवाद या आतंक को रोकने के तरीके ? इस तरह से देश की दो mahan shakshiyaton का अपमान करके goyaki अमेरिका ने अपनी ही kirkiri कर lee है इसके इस मामले को लेकर किंग खान ने किंग की ही तरह कहा ki मुझे mrei nasl मेरे देश और माय नेम इस "खान" पर naaz है.......

बुधवार, 14 मई 2008

जयपुर मे बलास्ट करके नफरत फैलाने वालों तुम यह ठीक से जान लो

नहीं सफल हो सकते तुम्हारे नापाक इरादे अब ये मान लो

हिंदुस्तान का हर बाशिंदा एक है तुम जान लो

मजहब नहीं सिखाता बेर अब तो तुम ये मान लो,

देह्सत और विद्वेष का जहर घोल कर जीत नहीं सकते तुम

मातृ-भूमी पर मर मिटने का जज्बा लिये जीतें है हम